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अगर देखने जाए तो हर कोई अपने जीवन में किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होता है, हर एक के जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है? लेकिन कुछ लोग जीवन से हार मान लेते हैं या डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं ऐसे लोगों के लिए हम आपके लिए एक फिल्म का सुझाव लेकर आए हैं और ऐसी फिल्म जिसमें एक लड़का है जो जीवन में कुछ और करना चाहता था पर तकदीर उससे कुछ और करना चाहती थी ऐसे में उसकी जिंदगी का मकसद मिल जाता है।
Ustad Hotel 2012 में बनी भारतीय मलयालम भाषा की ड्रामा फिल्म है। इसे 3 राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। जब यह फिल्म रिलीज हुई थी, तो इसके गानों और कई कलाकारों की सरल लेकिन बेहतरीन एक्टिंग की वजह से इसे काफी तारीफें मिली थीं। अगर हम इस फिल्म में देखें तो कैसे फिल्म का मुख्य अभिनेता जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता था, लेकिन कैसे किस्मत उसे उसका सही लक्ष्य पाने में मदद करती है और वह उसमें आगे बढ़ता है।
जाने क्या है उस्ताद होटल की कहानी
उस्ताद होटल तीन पीढ़ियों को एक साथ लाता है और आधुनिकता, परंपरा, संतोष और प्रेम के बीच संघर्ष की खोज करता है। फैजी (दुलकर सलमान) की कहानी, नायक के जन्म से बहुत पहले ही शुरू हो जाती है। उसके पिता (सिद्दीकी) अपने धंधे को चलाने के लिए एक बेटा चाहते थे। फैजी का जन्म चार लड़कियों के बाद हुआ था।
और चूँकि उसकी माँ उसे जन्म देने के तुरंत बाद ही मर गई थी, इसलिए उसका पालन-पोषण उसकी बहनों ने किया और उसका ज़्यादातर समय रसोई में ही बीतता था। और वही से फ़ैज़ी के मन मैं रसोई और खाने की प्रति लगाव बढ़ा।
जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसकी बहनों की एक-एक करके शादी हो जाती है। और फिर उसके पिता दूसरी शादी कर लेते हैं। फैजी अपने पिता को स्विट्जरलैंड में होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने जा रहा हैं बताता हैं।
लेकिन उसने होटल मैनेजमेंट नहीं, बल्कि शेफ का कोर्स किया है। इससे उसके पिता को यह पता चलने पर उसे बहुत दांते हैं और फ़ैज़ी घर से निकल जाता हैं।
उसके पिता नाराज़ हो जाते हैं और उससे उसका पासपोर्ट और क्रेडिट कार्ड भी छीन लेते हैं ताकि फैज़ी लंदन न जा सके जहाँ उसे शेफ की नौकरी मिल चुकी है।
गुस्से में, फैज़ी घर छोड़ देता है और अपने दादा करीम (थिलकन) के साथ मिल जाता है, जो कोझिकोड समुद्र तट पर उस्ताद होटल नाम से एक छोटा सा होटल चलाते हैं, जो करीम चाचा की बिरयानी के नाम से प्रसिद्ध है।
करीम और फ़ैज़ी के पापा के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं क्योंकि करीम महत्वाकांक्षी नहीं था और समुद्र तट पर इस छोटे से होटल को चलाने में खुश थे जैसा कि उम्मीद थी, जिसमें फैजी को होटल चलाने का वास्तविक जीवन का अनुभव मिलता है और उसके दादा उसे टेबल साफ करने से लेकर डिलीवरी बॉय बनने तक के काम करवाते हैं।
उसे साहिना (निथ्या मेनन) में अपना असली प्यार भी मिल जाता है। ऐसे ही कहानी आगे बढ़ती हैं और उसे समज मैं आता हैं क्यों उसके दादा करीम इतने छोटे से होटल चलाके खुश हैं और उसे जीवन जीने का असली मतलब समाज मैं आता हैं।
अंत में, नारायणन कृष्णन से मिलकर, जिन्होंने अपना जीवन गरीबों को भोजन कराने के लिए समर्पित कर दिया है, फेज़ी को आखिरकार करीम चाचा की इस कहावत का मतलब समझ में आता है कि “पेट तो कोई भी भर सकता है, लेकिन दिल तो एक अच्छा रसोइया ही भर सकता है”। जब वह घर लौटता है और पाता है कि करीम चाचा जो तीर्थयात्रा पर निकल गए है, तो फेज़ी उस्ताद होटल को अपने कब्जे में ले लेता है।
उस्ताद होटल मूवी के कलाकार और निर्देशक के बारे में
दुल्क्वेर सलमान जिसने अपनी एक्टिंग की मदद से अपनी एक अलग जगह बनाई फिल्म मैं और नित्या मेनन के साथ उसकी जोड़ी कमाल की थी। दोनों की केमिस्ट्री कमाल की थी, भले ही उन्हें साथ में कम स्क्रीन स्पेस मिला हो।
थिलकन(करीम चाचा) ने अपने बेहतरीन अभिनय किया लेकिन दुख की बात है कि अपने आखिरी अभिनय में एक बार फिर साबित कर दिया कि एक अच्छा अभिनेता जब एक बेहतरीन किरदार में होता है तो क्या कर सकता है। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे…
सिद्दीकी, दुलकर के पिता के रूप में एक गुस्सेल और एक अच्छे इंसान दोनों को जल्दी-जल्दी दिखाते हैं। अनवर रशीद मलयालम सिनेमा में एक रत्न है, जिसमें इसकी खूबसूरत डायरेक्शन और अंजलि मेनन की स्क्रिप्ट है जो आपके दिल को छू जाती है।
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मूवी तो सभी अच्छी होती हैं लेकिन कुछ मूवी ऐसी होती हैं जो हमारे मन में अपनी एक जगह बना के रह जाती हैं और कुछ सिखा जाती हैं ऐसी ही मूवी के सुझाव के लिए पढ़े हमारे और भी ब्लॉग