2018 को भारत में ‘ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ के रूप में मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र ने भी साल 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ के रूप में स्वीकार किया। ‘मिलेट्स’, जिसमें बाजरा, ज्वार, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सवां और चेना शामिल हैं। यूं तो ये सभी अनाज हम इंसानों के लिए बेहद फायदेमंद हैं, लेकिन आज बात ‘ज्वार’ की, जिसे लोग भारत का ‘सुपरफूड’ भी कहते हैं। तो आइए जानते हैं कि ज्वार सुपरफूड क्यों है और इसके क्या फायदे हैं।
ज्वार एक सुपरफूड क्यों?
ज्वार में बहुत से ऐसे पोषक तत्व और गुण हैं, जो इसे एक बेहद फायदेमंद आहार बनाते हैं।
आप डायबिटीज से पीड़ित हैं। आपका कोलेस्ट्रॉल कम होने का नाम नहीं ले रहा। या जिम में घंटों पसीना बहाने के बाद वजन कम नहीं हो रहा है तो आपके लिए ज्वार किसी रामबाण से कम नहीं है। ज्वार की एक बड़ी खासियत इसका ‘ग्लूटन-फ्री’ होना भी है। मतलब जिन लोगों को ‘ग्लूटन’ नामक प्रोटीन से एलर्जी होती है उनके लिए इससे बढ़िया विकल्प कोई नहीं है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मिलेट रिसर्च के निदेशक, विलास टोनपी, के अनुसार, प्राचीन काल से मानवता को जिन खाद्यान्नों की जानकारी रही है, उनमें जौ और बाजरा जैसे मोटे अनाज शामिल हैं।
वह बताते हैं, “सिंधु घाटी सभ्यता के समय भी बाजरा और अन्य अनाजों की खेती की जाती थी। आज 21 राज्यों में इसकी खेती होती है और प्रत्येक राज्य और क्षेत्र के अपनी विशिष्ट किस्में हैं, जो उनकी खाद्य संस्कृति और धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा हैं।”
भारत हर साल लगभग 1.4 करोड़ टन बाजरे का उत्पादन करता है, जो उसे दुनिया का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक देश बनाता है।
विलास टोनपी के अनुसार, “पिछले 50 वर्षों में कृषि योग्य भूमि 3.8 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 1.3 करोड़ हेक्टेयर रह गई है।
प्रोटीन-विटामिन से भरपूर
ज्वार में मिनरल, प्रोटीन, और विटामिन बी कॉम्प्लेक्स भरपूर मात्रा में होता है। इसमें पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम और आयरन भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो इसे पोषक बनाता है।
कृषि विशेषज्ञों ने मोटे अनाज को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए कई उपाय सुझाए थे, और अब उनके सुझाए गए तरीकों के सकारात्मक परिणाम भी नज़र आने लगे हैं।
पिछले दो वर्षों में बाजरे की मांग में 146 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सुपरमार्केट और ऑनलाइन स्टोर्स में अब मोटे अनाज से बने कुकीज़, चिप्स, पफ़ और अन्य उत्पाद उपलब्ध हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए लाखों लोगों को एक रुपये प्रति किलो की दर से बाजरा और अन्य मोटा अनाज वितरित किया जा रहा है। कुछ राज्यों में मध्यान्ह भोजन में भी इन मोटे अनाजों से बने व्यंजन परोसे जा रहे हैं।
मोटे अनाज के प्रति लोगों की बढ़ती रुचि तेलंगाना राज्य के आदिवासी समुदायों के लिए वरदान साबित हो रही है।