Sunday, 8 September 2024
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पंच केदार: उत्तराखंड में ट्रैकिंग के साथ करें भगवान शिव के पांच मंदिरों कीं यात्रा

Image courtesy: Instagram/trekkersofindia

पंच केदार: जो भगवान शिव के भक्तों और ट्रैकर्स के लिए एक अद्भुत स्थान है। इस छुट्टियों मैं यहाँ यात्रा करैं। जहां देवो के देव महादेव निवास करते हैं भगवान शिव शंकर का निवास एक अनोखी और दिव्य अनुभूति देता है और बहती नदी, झरने ऐसे दिखाई देते हैं मानो भगवान का साक्षात्कार हो गया हो। नास्तिक में भी यह स्थान इतना शांत है कि आस्था जगा देता है। हिमालय सदियों से आस्था का केंद्र रहा है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हिमालय की निकटता हर किसी की समस्याओं का कुछ न कुछ समाधान प्रदान करती है। यहां शरीर और मन स्वतः ही आत्मा से जुड़ जाते हैं।

पंच केदार वह स्थान है जहां भगवान शंकर के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर शामिल हैं। केदारनाथ मंदिर के साथ इन चार अन्य मंदिरों के संयुक्त समूह को पंचकेदार के नाम से जाना जाता है। इन अन्य चार मंदिरों के मार्ग मानचित्र की बात करें तो यह मंदिर केदारनाथ मंदिर और बद्रीनाथ मंदिर के मध्य में स्थित है। भगवान शिव के पांच अंगों से बने इस पंचकेदार में केदारनाथ सबसे पहले और कल्पेश्वर महादेव सबसे बाद में आते हैं।

पंच केदार के पीछे का इतिहास


इन मंदिरों का इतिहास महाभारत से लेकर जगतगुरु आदि शंकराचार्य के काल तक जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद भ्रातृहत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए पांडवों ने भगवान कृष्ण की इच्छा के अनुसार भगवान शिव की पूजा की थी। लेकिन शिवाजी पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने नंदी का रूप धारण किया, लेकिन पांडवों ने शिव को पहचान लिया। जैसे ही आत्मनिरीक्षण में गए, भीम ने पकड़ने की कोशिश की, उसमे उनका धड़ नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में चला गया और उसकी पीठ की पूजा वर्तमान केदारनाथ में की जाती है। तब पांडवों ने इन मंदिरों का निर्माण कराया था। पंचकेदार की यात्रा आसान नहीं है लेकिन हर साल लाखों भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां आते हैं।

भारतीय पुराणों के अनुसार स्वर्ग का मार्ग यहीं से शुरू होता है और यह देवताओं का निवास स्थान है, इसलिए उत्तराखंड को ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है। आज हम हिमालय में विराजमान भगवान शंकर के सानिध्य का आनंद लेंगे। हमारे प्रमुख चारधामों में आने वाले केदारनाथ महादेव से तो हम सभी परिचित हैं, लेकिन आज हम पंचकेदार कहे जाने वाले भगवान शंकर के अलग-अलग रूपों के दर्शन करेंगे।

केदारनाथ, जहां भगवान शिव की पीठ की प्रतिकृति की पूजा की जाती है। मध्यमहेश्वर वह स्थान है जहां भगवान शंकर की नाभि की पूजा की जाती है। तुंगनाथ महादेव में भगवान शिव की पूजा हस्त प्रतिकृति में की जाती है। रुद्रनाथ जहां भगवान शंकर के मुख की पूजा की जाती है। कल्पेश्वर महादेव जहां होती है भगवान शंकर की जटाओं की पूजा.

केदारनाथ


पंचकेदार यात्रा केदारनाथ मंदिर से शुरू होती है। चारधाम और बार ज्योर्तिलिंग के प्रमुख बाबा केदारनाथ की महिमा अलग ही है। केदारनाथ मंदिर का ट्रेक 16 KM हैं। इसमें ऐसा दिव्य तत्व है कि जब कोई भी तीर्थयात्री लंबी चढ़ाई के बाद यहां पहुंचता है तो उसका सिर स्वत: ही श्रद्धा से झुक जाता है और शरीर से अनायास ही आंसू गिर जाते हैं। नवंबर से अप्रैल तक मंदिर के द्वार बंद रहते हैं।

कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार आदिगुरू शंकराचार्य ने करवाया था। बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है केदारनाथ, पास में बहती मंदाकिनी नदी की धारा और हर-हर भोले की ध्वनि के साथ यह ज्योतिर्लिंग पहाड़ियों से टकराकर अनंत ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है। यह मंदिर आमतौर पर हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली कात्यूर शैली में बनाया गया है।

तुंगनाथ विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है।


पंचकेदार में अगला नंबर आता है तुंगनाथ महादेव का, जहां शिवजी के हाथ और हृदय की प्रतिकृति की पूजा की जाती है। तुंगनाथ विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। जहां आज भी रामायण और महाभारत की ध्वनियां सुनाई देती हैं। चोपता से 5 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद तुंगनाथ महादेव का मंदिर है। मई से नवंबर तक मंदिर के द्वार खुले रहते हैं।

चोपता गांव, जिसे “Mini Switzerland of Uttarakhand” . चंद्रशिला के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “चंद्रमा” तुंगनाथ महादेव ट्रेक का शिखर या अंतिम बिंदु है। चंद्रशिला चोटी समुद्र तल से 13,000 फीट की आकर्षक ऊंचाई पर है। चंद्रशिला के साथ कई दंतकथाएं जुड़ी हुई हैं। एक दंतकथा के अनुसार, भगवान राम ने रावण को हराने के बाद इसी शिखर पर तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने यहां चंद्रशिला मंदिर में ध्यान किया था। ट्रेक चंद्रशिला पीक तक आगे बढ़ता है। चंद्रशिला चोटी तक पहुंचने के लिए तुंगनाथ से 1.5 किमी की खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है।

इस फुटपाथ पर बग्याल (घास के मैदानों) से गुजरना स्वर्ग में चलने जैसा लगता है, दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर तुंगनाथ तक का रास्ता आश्चर्यों से भरा है। मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली के अनुसार है। मुख्य मंदिर से सटा हुआ पार्वतीजी का मंदिर है। यह भी माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए यहां तपस्या की थी। ऊपर से कहा जा सकता है कि यह पवित्र भूमि है। इसके अलावा, यहां शंकराचार्य द्वारा निर्मित पांच अन्य छोटे मंदिर और साथ ही भैरव मंदिर भी हैं।

चोपता, तुंगनाथ में ही सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘Kedarnath‘ और गुजराती फिल्म ‘Chaal Jeevi Laiye’ की शूटिंग हुई थी।

मध्यमहेश्वर महादेव


केदारनाथ से आगे पंचकेदार में दूसरा मध्यमहेश्वर आता है जहां भगवान शंकर की नाभि की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति एक छोटा सा सुंदर मंदिर आस्था का केंद्र है। इस मंदिर तक लंबी यात्रा करके पहुंचना पड़ता है। लेकिन खूबसूरत बुग्याल (पहाड़ियों के बीच के मैदान) और पहाड़ियों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाजें अनोखी हैं। इस ट्रेक का अंतर 18 KM हैं। मई से नवंबर तक मंदिर के द्वार खुले रहते हैं।

यहां से वाहन रासी गांव तक जा सकते हैं, जहां से मध्य महेश्वर तक पहुंचने के लिए लगभग 18 किमी का ट्रैक पार करना पड़ता है। जहां से चौखंबा का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। है तीर्थयात्रियों के अलावा युवा इस नजारे को देखने के लिए खासतौर पर इस ट्रेक को चुनते हैं। मध्य महेश्वर से आगे 2 KM की चढ़ाई के बाद बूढ़ा महेश्वर के नाम से पूजित एक शिव मंदिर है, आसपास की पहाड़ियों और सड़कों पर बहती जलधाराओं के बीच से गुजरते हुए छोटे-छोटे गांवों का मधुर जीवन में एक बार तो यहाँ आना चाहिए।

Image courtesy: Instagram

रुद्रनाथ महादेव


पंचकेदार में सबसे लंबी यात्रा रुद्रनाथ महादेव की है। ट्रेक की दूरी 24 किमी है। जहां भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है। यह मंदिर सामने से एक गुफा आकार में बना हुआ है। यह स्थान हिमालय और आसपास के क्षेत्रों का मनोरम दृश्य प्रदान करता है। यह भगवान शिव का दूसरा रूप है। आप सूर्यकुंड, चंद्रकुंड, ताराकुंड भी देख सकते हैं जो मंदिर के पास स्थित है। बाद में सागर गांव के लिए वापस यात्रा शुरू करें। मई से अक्टूबर तक मंदिर के द्वार खुले रहते हैं।

Image courtesy: X/Ankita

कल्पेश्वर महादेव


पंचकेदारों में अंतिम हैं कल्पेश्वर महादेव। यहां भगवान की जटा की पूजा की जाती है। इसलिए इसे ‘जटेश्वर महादेव’ के नाम से भी जाना जाता है। कल्पगंगा नदी इस अति प्राचीन गुफा मंदिर से होकर गुजरती है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां अन्य पंचकेदार मंदिर बर्फबारी के कारण छह महीने तक बंद रहते हैं। लेकिन इस मंदिर के कपाट साल भर भक्तों के लिए खुले रहते हैं। इस पंचकेदार के बाद शिवजी के शेष शरीर की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ में की जाती है। यहां आकर साफ तौर से समझा जा सकता है कि शिवाजी ने रहने के लिए हिमालय को चुना था।

कल्पेश्वर में प्रसिद्ध कल्पवृक्ष है। माना जाता है कि यह पेड़ व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करता है। 2134 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा मंदिर स्थित है और यहां शिव की पूजा उनके जटाधारी रूप में की जाती है। कल्पेश्वर घने जंगलों और उर्गम घाटी में स्थित सीढ़ीदार खेतों से घिरा हुआ है।

सब लोग चारधाम जाते हैं।पर ये जगह रास्ते में ही आती हैं। यहाँ जा कर आप भगवान शिव के आशीर्वाद लेने का मोका प्राप्त कर सकते हैं। और जिस तरह का नजारा आपको देखने को मिलेगा वो कहीं और नहीं मिलेगा.

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