Monday, 9 September 2024
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World Heritage Day 2024: क्या आप जानते हैं भारत में कितने धरोहर स्थल हैं? आइये जानते है इसका महत्व और इतिहास

हर साल यह उत्सव 18 अप्रैल को आयोजित किया जाता है, जो विश्व की विरासत के लिए एक प्रमुख दिन है और यह दिन ऐतिहासिक स्मारकों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करता है।

विश्व विरासत दिवस का महत्व क्या है?

  • प्राचीन स्मारक, इमारतें और विरासत स्थल भारत में पर्यटन के माध्यम से राजस्व का एक बड़ा स्रोत हैं और इस प्रकार इन्हें दुनिया के लिए एक संपत्ति माना जाता है।
  • यह दिन विश्व की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रखने के लिए दुनिया के सभी समुदायों के को प्रोत्साहित करता है। 
  • कुछ लोकप्रिय विश्व धरोहर स्थलों में भारत के अजंता गुफाएं , एलोरा गुफाएं, आगरा किला और ताज महल जैसी धरोहर है साथ ही विश्व में चीन की महान दीवार, माचू पिचू, गीज़ा के पिरामिड और कई अन्य शामिल हैं। 

विश्व विरासत दिवस का इतिहास क्या है?

  • स्मारक और स्थलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिषद (ICOMOS) की स्थापना 1982 में की गई थी। 
  • स्मारकों और स्थलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस अब लोकप्रिय रूप से विश्व विरासत दिवस के रूप में जाना जाता है और इस संगठन के प्रिंसिपल्स वेनिस चार्टर में रखे गए थे। 
  • ICOMOS संगठन का निर्माण इन स्थानों की सुरक्षा और महत्व की आवश्यकता के बाद किया गया था।
  • कई आर्किटेक्ट, इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, भूगोलवेत्ता, पुरातत्वविद् और कलाकार इस ICOMOS का हिस्सा हैं। 
  • प्रत्येक वर्ष यह संगठन मदद करने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करता है कि दुनिया के कुछ सबसे खूबसूरत स्थल और उन सांस्कृतिक स्मारकों का महत्व आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित रहे।
  • International Council on Monuments and Sites की स्थापना के बाद से, दुनिया भर के 150 देशों में 10,000 से अधिक सदस्यों को शामिल करने के लिए इसका विस्तार हुआ है। इन 10,000 सदस्यों में से 400 विभिन्न संस्थानों, अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समितियों और राष्ट्रीय समितियों से संबंधित हैं। 

भारत के सांस्कृतिक धरोहर स्थल । Unesco World Cultural Heritage Site In India

1.अजंता गुफाएँ

अजन्ता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन 29 चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं। यह गुफाएँ अजन्ता नामक गाँव के सन्निकट ही स्थित है, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। (निर्देशांक: 20° 30’ उ० 75° 40’ पू॰) अजन्ता गुफाएँ सन् 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है।

‘’’नेशनल ज्यॉग्राफिक ‘’’ के अनुसार: आस्था का बहाव ऐसा था कि प्रतीत होता है, जैसे शताब्दियों तक अजन्ता समेत, लगभग सभी बौद्ध मन्दिर, उस समय के बौद्ध मत के शासन और आश्रय के अधीन बनवाये गये हों।

2.आगरा का किला

एक ईंटों का किला था,इसका प्रथम विवरण 1080 ई० में आता है, जब महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्ज़ा किया था। सिकंदर लोदी (1487-1517), दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने आगरा की यात्रा की उसने अपने काल में यहां कई स्थान, मस्जिदें व कुएं बनवाये।

पानीपत के बाद मुगलों ने इस किले पर भी कब्ज़ा कर लिया साथ ही इसकी अगाध सम्पत्ति पर भी। इस सम्पत्ति में ही एक हीरा भी था जो कि बाद में कोहिनूर हीरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तब इस किले में इब्राहिम के स्थान पर बाबर आया। उसने यहां एक बावली बनवायी। सन 1530 में यहीं हुमायुं का राजतिलक भी हुआ। हुमायुं इसी वर्ष बिलग्राम में शेरशाह सूरी से हार गया व किले पर उसका कब्ज़ा हो गया। इस किले पर अफगानों का कब्ज़ा पांच वर्षों तक रहा, जिन्हें अन्ततः मुगलों ने 1556 में पानीपत का द्वितीय युद्ध में हरा दिया।

3.ताजमहल

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित एक विश्व धरोहर मक़बरा , और विश्व के 7 अजूबों में से एक है। इसका निर्माण 17 वीं सदी में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था।

मुगल सम्राट शाहजहां के समय में मुगल वास्तुकला अपने चरम शिखर पर थी, ताजमहल उन सभी वास्तुकलाओं के उदाहरण में सर्वप्रसिद्ध है। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् 1983 में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली, अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। साधारणतया देखे गये संगमर्मर की सिल्लियों की बडी- बडी पर्तो से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से ढंका है।

4.हुमायूँ का मकबरा

हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (1268-1287) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी।

यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार 1562 में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था।

5.क़ुतुब मीनार

क़ुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। यह दिल्ली का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। इसकी ऊँचाई 73 मीटर (239.5 फीट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है। इसमें 379 सीढियाँ हैं। मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1192 के हैं।

यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। कहा जाता है कि ये मीनार पास के 27 किला को तोड़कर और दिल्ली विजय के उपलक्ष्य मे किला के मलबे से बनाई गयी थी। इसका प्रमाण मीनार के अंदर कुतुब के चित्र से मिलता है। एक स्थान के अनुसार ये मीनार वराहमिहिर का खगोल शास्त्र वेधशाला थी। कुतुब मीनार परिसर में एक कुतुब स्तंभ भी है जिसपर जंग नही लगती है। इसे आप नीचे फोटो मे देख सकते है।

6.रानी की वाव

रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। इस चित्र को जुलाई 2018 में RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा ₹100 के नोट पर चित्रित किया गया है तथा 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया।

पाटण को पहले ‘अन्हिलपुर’ के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी थी। कहते हैं कि रानी की वाव (बावड़ी) वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की प्रेमिल स्‍मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। रानी उदयमति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रा’ खेंगार(खंगार) की पुत्री थीं। सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक मूलराज थे। सीढ़ी युक्‍त बावड़ी में कभी सरस्वती नदी के जल के कारण गाद भर गया था। यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का अनूठा वाव है।

7.अहमदाबाद का ऐतिहासिक शहर

अहमदाबाद का ऐतिहासिक नगर या पुराना अहमदाबाद, भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद नगर का ही एक भाग है । 11 वी शताब्दी के आस पास अहमदाबाद आशावल के नाम से जाना जाता था, उस समय राजा आशा भील का शासन था। वैसे आधुनिक शहर की स्थापना अहमद शाह प्रथम ने 1411 में गुजरात सल्तनत के रूप में की थी। तब से यह गुजरात सल्तनत की एवं कालान्तर के महत्त्वपूर्ण राजनैतिक एवं गुजरात के वाणिज्यिक केन्द्र की राजधानी बना रहा। वर्तमान में भी घना एवं संकुल होने के बाद भी आधुनिक अहमदाबाद नगर का हृदय केन्द्र बना हुआ है। इसे जुलाई 2017 में यूनेस्को ने विष्व धरोहर स्थल घोषित किया था।

8.फ़तेहपुर सीकरी

एक नगर है जो कि मुगल सम्राट अकबर ने सन् 1571 में बसाया था। वर्तमान में यह आगरा जिला का एक नगरपालिका बोर्ड है। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह यहाँ के मुगल साम्राज्य में अकबर के राज्य में 1571 से 1585 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही फिर इसे खाली कर दिया गया, शायद पानी की कमी के कारण। यह सिकरवार राजपूत राजा की रियासत थी जो बाद में इसके आसपास खेरागढ़ और मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में बस गए। फतेहपुर सीकरी मुसलिम वास्तुकला का सबसे अच्‍छा उदाहरण है। फतेहपुर सीकरी मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यह मक्‍का की मस्जिद की नकल है और इसके डिजाइन हिंदू और पारसी वास्‍तुशिल्‍प से लिए गए हैं। मस्जिद का प्रवेश द्वार 54 मीटर ऊँचा बुलंद दरवाजा है जिसका निर्माण 1573 AD में किया गया था। मस्जिद के उत्तर में शेख सलीम चिश्‍ती की दरगाह है जहाँ नि:संतान महिलाएँ दुआ मांगने आती हैं।

आंख मिचौली, दीवान-ए-खास, बुलंद दरवाजा, पांच महल, ख्‍वाबगाह, जौधा बाई का महल,शेख सलीम चिश्ती के पुत्र की दरगाह, शाही मसजिद, अनूप तालाब फतेहपुर सीकरी के प्रमुख स्‍मारक हैं।

9.नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान

नन्दादेवी राष्ट्रीय अभयारण्य लगभग 630.33 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ उत्तर-भारत का विशालतम अभयारण्य है। जिसे सन् 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था तथा फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान सहित सन् 1988 में विश्व संगठन युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया जा चुका है।

यह नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान 630.33 sq के क्षेत्र में फैला हुआ है और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर नन्दा देवी बायोस्फ़ियर रिज़र्व बनता है जिसका कुल क्षेत्रफल २२३६.७४ वर्ग कि॰मी॰ है और इसके चारों ओर 2236.74 sq km का मध्यवर्ती क्षेत्र (buffer zone) है। यह रिज़र्व युनेस्को की विश्व के बायोस्फ़ेयर रिज़र्व की सूची में सन् 2004 से अंकित किया जा चुका है।

10.धोलावीरा

धोलावीरा भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले की भचाऊ तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका नाम यहाँ से एक किमी दक्षिण में स्थित ग्राम पर पड़ा है, जो राधनपुर से 165 किमी दूर स्थित है। धोलावीरा में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खण्डहर मिलते हैं और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था। इस पुरातत्व स्थल को धोलावीरा गांव के निवासी शंभूदान गढ़वी ने 1960 के दशक के प्रारम्भ में खोजा था, जिन्होंने इस स्थान पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्षों तक प्रयास किये।

भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती हैं। यहाँ पर आबादी लगभग 2650 ईसापूर्व में आरम्भ हुई और 2100 ईपू के बाद कम होने लगी। कुछ काल इसमें कोई नहीं रहा लेकिन फिर 1450 ईपू से फिर यहाँ लोग बस गए। नए अनुसंधान से संकेत मिलें हैं कि यहाँ अनुमान से भी पहले, 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही।

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