भारत का स्वतंत्रता दिवस , जो हर साल
15 अगस्त को पूरे देश में धार्मिक रूप से मनाया जाता है , राष्ट्रीय दिवसों की सूची में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह हर भारतीय को एक नई शुरुआत की याद दिलाता है, 200 से अधिक वर्षों के ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्ति के युग की शुरुआत। 15 अगस्त 1947 को ही
भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्र घोषित किया गया था, और देश के नेताओं को नियंत्रण की बागडोर सौंपी गई थी। भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करना नियति के साथ एक मुलाकात थी, क्योंकि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष एक लंबा और थकाऊ संघर्ष था, जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान हुए, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी।
15 अगस्त 1947 देश का पहला स्वतंत्रता दिवस उस शाम दिल्ली के प्रिंसेस पार्क में ब्रिटिश का झंडा उतार कर तिरंगा फहराया जाना था तब वहां 300 लोगों के इकट्ठा होने का अनुमान लगाया गया था लेकिन हकीकत में 5 लाख लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा खुद जवाहरलाल नेहरू और लॉर्ड माउंट बेटन को समझ नहीं आ रहा था कि मंच तक जाए कैसे पंडित नेहरू को लोगों के कंधों पर चढ़कर मंच तक पहुंचाने की जद्दोजहद करनी पड़ी और लॉर्ड माउंट बेटन तो अपनी बग्गी के बाहर से ही नहीं निकल पाए लर्ड माउंट बेटन की बेटी पामेला कहती हैं कि जब मैं वहां पहुंची तो पंडित नेहरू ने मुझे चिल्लाते हुए कहा कि तुम लोगों के सिर और कंधों पर पैर रखते हुए मंच पर आ जाओ वो बिल्कुल बुरा नहीं मानेंगे तो मैंने कहा मैंने ऊंची एड़ी वाली सैडल पहनी है जो लोगों को चुम सकती है तब नेहरू फिर बोले तो सैंडल को हाथ में लो और आगे बढ़ो यह कहते हुए नेहरू भी लोगों के ऊपर से होते हुए मंच पर पहुंचे और फिर उन्हें ते हुए मैंने भी अपनी सैंडल उतार कर हाथों में लिया और इंसानों के सरों पर कालीन की तरह पैर रखते हुए पहुंची जहां मैं सरदार पटेल की बेटी मणि बेन पटेल के साथ जाकर खड़ी हो गई उधर माउंट बेटन की बग्गी लोगों के सैलाब के बीच इतनी बुरी तरह से फंस गई थी कि वह उसमें से उतरने की सोच भी नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने पंडित नेहरू की तरफ देखते हुए चिल्लाकर कहा लेट्स होस्ट दी फ्लैग यानी चलिए झंडा फहराए जिसके उसके बाद प्रिंसेस पार्क में भारत का महान तिरंगा फैरा गया और माउंट बेटन ने अपनी बग्गी पर खड़े होकर ही तिरंगे को सलामी दी जिसके बाद कुछ ऐसा हुआ जो अंग्रेजों के 200 सालों के शासन में कभी नहीं हुआ जी हां
भारत की जनता ने पहली बार दिल से किसी अंग्रेज के नाम का जयकारा किया वो थे लॉर्ड माउंट बेटन हर तरफ एक ही नारा गूंज रहा था माउंट बेटन की जय पंडित माउंट बेटन की जय उस दिन माउंट बेटन को वह सौभाग्य
प्राप्त हुआ जो किसी अंग्रेज को नहीं हुआ था और उनकी आंखें खुशी से भर आई उस समय देश के करोड़ों देशवासियों ने आजादी का जश्न इतने बड़े स्तर पर मनाया कि जय हिंद जय भारत और भारत माता की जय के नारों की गूंज पूरी दुनिया के कोने तोन तक पहुंच गई और आज की इस खास वीडियो में आपको देश के पहले स्वतंत्र दिवस की शहर पर ले जाने वाले हैं जिसमें हम कुछ दिलचस्प किस्सों के साथ दुर्लभ वीडियोस भी देखेंगे बकायदा हम ब्रिटेन का झंडा उतार कर भारत का तिरंगा लगाने का दुर्लभ वीडियो भी देखेंगे इन सब की मदद से आप उन खुशनुमा पलों को खुद महसूस कर पाएंगे आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा और तो और खुशी के आंसुओं से भर जाएंगी आपकी आंखें तो पूरा वीडियो जरूर देखिएगा दोस्तों द्वितीय विश्व युद्ध में भले ही प्राइम मिनिस्टर वेस्टन चर्चिल ने ब्रिटेन को जीत दिलवाई थी लेकिन इस जंग में ब्रिटिशर्स की कमर टूट गई थी दूसरी तरफ भारत में आजादी के आंदोलन की रफ्तार काफी तेज हो चुकी थी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की देश के बाहर देश के लिए बनाई गई आजाद हिंद फौज अब जंग के लिए तैयार थी और महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था जो देख ब्रिटिशर्स यह समझ चुके थे कि अब अगर हम भारत को आजादी नहीं देंगे तो वह हमें बेइज्जत करके देश से बाहर खदेड़ फेंकें ऐसे में नए प्राइम मिनिस्टर रिचर्ड एटली ने 20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन की हाउस ऑफ कॉमंस में घोषणा करते हुए कहा कि हम 30 जून 1948 तक भारत को पूरी तरह से आजाद कर देंगे लेकिन समय बीतने के साथ कुछ ऐसा हुआ कि भारत को आजाद करने की तारीख नजदीक आ गई दर असल भारत को आजाद करने की जिम्मेदारी देश के आखिरी वाइसर आय लुई माउंट बेटन को दी गई थी जो शुरुआत में इस काम में साल भर का समय लेने वाले थे लेकिन देश की स्थिति अब नियंत्रण से बाहर होने लगी थी इसी दौरान एक और स्वतंत्रता सेनानी लगातार संघर्ष कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजों के डिवाइड एंड रूल षड्यंत्र की वजह से देश के कई इलाकों में जात-पात के दंगे भड़क उठे थे स्थितियां अंग्रेजों के हाथों से बाहर निकल रही थी .
तभी ब्रिटिश इंडिया के आखिरी गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी ने माउंट बेटन को समझाते हुए कहा कि अगर आपने 30 जून 1948 तक इंतजार किया तो वापस करने के लिए आपके पास कोई सत्ता ही नहीं बचेगी यह बात उनके जहन में बैठ गई थी और लॉर्ड माउंट बेटन ने भारत को जल्द से जल्द आजाद करने का निर्णय लिया और 3 जून 1947 को इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान कर दिया गया कि 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को आजादी दी जाएगी साथ ही भारत और पाकिस्तान के नाम के दो देश बनेंगे और इनके संविधान भी अलग-अलग होंगे जिससे लंदन में तो हैरानी का माहौल फैल गया क्योंकि अब सोने के अंडे देने वाली यह चिड़िया 200 सालों बाद उनके कैद से आजाद होने वाली थी लेकिन भारत में खुशियों का माहौल फैल गया क्योंकि जिस आजादी के लिए लाखों फ्रीडम फाइटर्स ने अपनी जान दी थी अब जल्द ही सभी देशवासी उस आजादी की खुली हवा में सांस लेने वाले थे दोस्तों क्या आप जानते हैं कि आजादी के दिन तो 15 अगस्त को चुना गया लेकिन तब आजादी का समारोह 14 अगस्त की दरमियानी रात को ही क्यों शुरू कर दिया गया था तो इसके पीछे भी एक खास कारण था दरअसल भारत के वरिष्ठ ज्योतिषियों के मुताबिक 15 अगस्त का दिन शुभ नहीं था उन्होंने कहा कि ग्रह नक्षत्र की स्थितियों के लिहाज से 15 अगस्त को इतना महत्त्वपूर्ण काम नहीं किया जा सकता और सौभाग्य से 14 अगस्त के दिन सितारों की स्थिति 15 अगस्त की तुलना में ज्यादा बेहतर थी लिहाजा फैसला लिया गया कि 14 अगस्त 1947 की ठीक आधी रात को यदि भारत को आजाद कर दिया जाए तो यह हर तरह से बेहतर साबित होगा वायसराय लॉर्ड माउंट बेटन ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और 14 अगस्त की रात 11 बजे संसद भवन के सेंट्रल हॉल में स्वतंत्र ता दिवस समारोह आयोजित किया गया जिसकी शुरुआत सुचिता कृपलानी ने की जो 60 के दशक में उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी पहले अलमा इकबाल का गीत सारे जहां से अच्छा और फिर बंकिम चटर्जी का वंदे मातरम गाया जो बाद में भारत का राष्ट्रगीत बना ठीक 11:55 पर आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण कस्ट विद डेस्टिनी यानी कि नियति से मिलन शुरू करते हुए कहा बहुत साल पहले हमने अपनी नियती से वादा किया था और अब वह समय आ गया है जब हम अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करेंगे पूरी तरह से या पूरी तरह से तो नहीं लेकिन बहुत हद तक आधी रात के समय जब दुनिया सो रही होगी भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जागेगा आगे उन्होंने कहा अच्छा है कि हम इस वक्त खास तौर से इस बात को याद रखें इस आजादी के दरवाजे पर जब हम खड़े हैं कि हिंदुस्तान किसी एक फिरके का मुल्क नहीं है एक मजहब वालों का नहीं है बल्कि बहुत सारे बहुत मम के बहुत धर्म मजहब का है फिर घड़ी में जैसे ही रात के 12 बजे तो एक साथ कई शंख बजने लगे वहां मौजूद लोगों की आंखों से से आंसू बह निकले महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस की जय के नारे से सेंट्रल हॉल गूंज गया की जय राष्ट्रपति सुभाष चंद्र बोस का 51 बैलों का रथ शंद्र बाबू की जय देखिए राष्ट्रपति सुभाष चंद्र बोस का 5 बैलों के रब का तवारीख जुलूस इतिहास गत महात्मा गांधी की जय महात्मा गांधी की जय पंडित नेहरू की जय अलाल नेहरू की जय जिसके बाद आजादी के लिए शहीद हुए स्वतंत्र के सेनानियों की याद में दो मिनट का मौन भी रखा गया |
आजादी के शहीदों यानी आजादी की जंग में जान कुर्बान करने वाले बहादुरों की याद में दो मिनट की खामोशी वहीं बाहर तेज हवा के साथ बारिश में भी हजारों भारतीय क्षण का इंतजार कर रहे थे जैसे ही नेहरू संसद भवन से बाहर निकले मानो हर कोई उन्हें घेर लेना चाहता था वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह बताते हैं हम सब रो रहे थे एक दूसरे की भावनाओं में बह गए थे और आसपास में अनजान लोग भी खुशी से एक दूसरे को गले लगा रहे थे कुछ समय बाद जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद लॉर्ड माउंट बेटन को औपचारिक रूप से भारत के पहले गवर्नर जनरल बनाने का नेवता देने पहुंचे माउंट बेटन ने उनका अनुरोध तहे दिल से स्वीकार किया उन्होंने पोर्ट वाइन की एक बोतल निकाली और अपने हाथों से अपने मेहमानों को वह शराब परोस द फिर अपना गिलास भरकर उन्होंने अपना हाथ ऊंचा किया बोले टू इंडिया जिसके बाद पंडित नेहरू ने उन्हें एक लिफाफा देते हुए कहा इसमें उन मंत्रियों के नाम है जिन्हें कल शपथ दिलाई जाएगी पंडित नेहरू के जाने के बाद जब माउंट बेटन ने यह लिफाफा खोला तो उनकी हंसी छूट गई क्योंकि वह खाली था पंडित जी आजादी के दिन इतने खुश थे कि वह उस लिफाफे में मंत्रियों के नाम वाला कागज ही रखना भूल गए थे उस रात दिल्ली की सड़कों का वर्णन करते हुए एक अमेरिकन पत्रकार ने लिखा कि सड़कों पर लोग खुशी से चिल्ला रहे थे हिंदू मुसलमान और सिख सभी आजादी का जश्न मना रहे थे ऐसा लग रहा था कि नए साल की पहली शाम का न्यूयॉर्क के टाइम स्क्वायर का नजारा मित्रों आजादी का यह समारोह सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं था बल्कि देश के हर कोने में स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाया जा रहा था जैसे सपनों के शहर मुंबई में शहर के मेयर ने ताज जैसे खूबसूरत होटल में रात्री भोज का आयोजन किया हिंदुओं के धार्मिक शहर बनारस में एक मुसलमान द्वारा राष्ट्रीय झंडा फहराया गया तो उत्तर पूर्व के पहाड़ी शहर शिलोंग में गवर्नर ने एक समारोह की अध्यक्षता में ज चार जवानों द्वारा राष्ट्रीय झंडा फहराया गया इन नौजवानों में हिंदू मुसलमान और लड़के लड़कियां दो जोड़ों में थे यहां दिल्ली में आजादी का जश्न मनाकर कुछ लोग अपने घर चले गए तो कुछ वहीं संसद भवन के पास हरे लॉन में और फुटपाथ पर सो गए 15 अगस्त की सुबह 8:30 बजे लॉर्ड माउंट बेटन ने जवाहरलाल नेहरू को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई आइए इस ऐतिहासिक क्षण की दुर्लभ वीडियो देखते हैं.
हमारे सब प्रधानों के सामने फेडरल कोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति श्री हरीलाल कनिया के हाथों देश सेवा की शपथ लेते हैं इसी तरह गवर्नर जनरल के हाथों अपनी नई हुकूमत के मुख्य प्रधान पंडित नेहरू और दूसरे प्रधान देश सेवा की शपथ ले रहे हैं बाहर खड़े हुए लोगों का जोश खरोश बढ़ रहा है इस इंतजार में बेताब है कि कब नेताओं के दर्शन हो आप है स्वतंत्र भारत के पहले जवाला की जय अगले दिन दिल्ली की सड़कों पर लाखों लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा सड़के लोगों से इतनी खता खच भरी हुई थी कि गाड़ी छोड़िए साइकिल पर भी सफर करना मुमकिन नहीं था शाम 5:00 बजे इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में माउंट बेटन को भारत का तिरंगा झंडा फहराना था और यह अनुमान लगाया गया था करीब 300 लोग आएंगे लेकिन लोग की भीड़ बढ़ती गई और पूरे इलाके में 5 लाख लोग इकट्ठा हो गए इतनी भीड़ भारत के इतिहास में कुंभ स्नान के सिवाय किसी भी अवसर पर एकत्रित नहीं हुई थी उस पल का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भीड़ को रोकने के लिए लगाई गई बल्लिया बैंड वालों के लिए बनाया गया मंच विशिष्ट अतिथियों के दर्शक दीर्घ और रास्ते दोनों ओर बांधी गई रस्सियां हर चीज लोगों के इस प्रबल धारा में बह गई थी बैंड वालों के आसपास लोगों की भीड़ इतनी थी कि ढोल बजाना नामुमकिन हो गया था लोग एक दूसरे से इतना सट कर बैठे थे कि इनके बीच से हवा का गुजरना भी मुश्किल था इंग्लिश राइटर डोमिनिक लेपियर और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में लिखा था कि उस भीड़ में हजारों ऐसी औरतें भी थी जो अपने दूध पीते बच्चों को सीने से लगाए हुई थी इस डर से कि कई उनके बच्चे बढ़ती हुई भीड़ में पिचक ना जाए जब उन्हें भीड़ का धक्का लगता था वह अपने बच्चों को उन्हें रबड़ की गेंद की तरह हवा में उछाल देती और जब वह नीचे गिरता तो उन्हें पकड़कर फिर से उछाल देती एक क्षण में हवा में इस तरह कई बच्चे उछाल दिए गए पर खड़ी लॉर्ड माउंट बेटन की 17 साल की बेटी पामेला की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई वह सोचने लगी हे भगवान यहां तो बच्चों की बारिश हो रही है |
प्रिंसेस पार्क में भारत के तरंग के को लहराता देखने का सौभाग्य जिस भी भारतीयों को प्राप्त हुआ उनका जीवन धन्य हो गया क्योंकि 200 सालों की कड़ी तपस्या के बाद जब आजादी का तरंगा फहराया गया तब अचानक से तेज हवाएं चलने लगी और तिरंगे के ठीक पीछे एक इंद्रधनुष उभर आया मानो प्रकृति भी भारत की आज शादी का जश्न मना रही हो ऐसा ही माहौल पूरे देश में था हर जगह जुलूस निकल रहे थे लोग खुशी से एक दूसरे को गले लगा रहे थे और आजादी के जश्न को मना रहे थे हालांकि देश के कुछ हिस्सों में लोग बंटवारे का दर्द भी सह रहे थे उनके लिए 14 अगस्त की रात खुशनुमा नहीं बल्कि दुख दर्द और पीड़ा भरी काली रात थी जि विषय में आप हमारी डिटेल वीडियो डिस्क्रिप्शन में दी हुई लिंक से देख सकते हैं और यही कारण है कि 15 अगस्त के दिन यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिनकी भारत की आजादी में अहम भूमिका का थी वो नहीं दिखाई दे रहे हैं क्योंकि उस वक्त वो ना तो संसद में दिखे थे ना राष्ट्रपति भवन में ना इंडिया गेट पर और ना ही लाल किले पर 14 अगस्त की रात प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जो भाषण दिया था वह भाषण गांधी जी ने नहीं सुना था बल्कि उस रात व 9:00 बजे ही सोने चले गए थे उस वक्त गांधी जी कोलकाता के बेलिया घाट में लगभग खंडहर हो चुकी हैदरी मंजिल नाम की हवेली में विश्राम कर रहे थे क्योंकि देश के बंटवारे से शुरू हुई संप्रदायिक हिंसा को शांत करवाने के लिए बापू 13 को कलकाता पहुंचे जहां वह हिंसक प्रवृत्तियों को रोकने की कोशिश कर रहे थे 15 अगस्त की सुबह 2 बजे वह नींद से उठे और हिंसक दंगे रोकने और शांति स्थापित करने के लिए उपवास रखा जिसके बाद उन्होंने गीता पाठ करवाया और दोपहर के वक्त बेलिया घाट में एक प्रार्थना सभा में पहुंचे जहां समाज के हर तबके के लोग मौजूद थे जी हां इस तरह आजादी के दिन महात्मा गांधी ने अन्न का एक भी निवाला नहीं खाया था और वह आजादी के जश्न से भी दूर थे क्योंकि वह देश में दंगे फसाद ना चाहते थे तो साथियों 15 अगस्त 1947 भारत के महान इतिहास का वह ऐतिहासिक दिन था जब हमारे देश को आजादी मिली वहीं आजादी जिसके लिए भगत सिंह राजगुरु सुखदेव चंद्रशेखर आजाद जैसे लाखों क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते अपने प्राण की आहुति दे दी थी वहीं आजादी जिसके लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर देश के लिए आजाद हिंद फौज खड़ी कर दी थी वही आजादी जिससे अहिंसा से पाने की कोशिश में महात्मा गांधी सरदार पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ करोड़ों भारतीयों का काफिला खड़ा था तो दोस्तों अगर आप भी देश को आजादी दिलवाने वाले फ्रीडम फाइटर्स पर गर्व करते हैं तो उनके सम्मान में कमेंट बॉक्स में जय हिंद जय भारत जरूर लिखें यह वीडियो अच्छा लगा हो तो लाइक और शेयर करके 11000 लाइक्स के लक्ष्य को हासिल करने में हमारी मदद कीजिए और भारत के महान इतिहास से जुड़े ऐसे ही दुर्लभ वीडियोस के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करके पास वाली घंटी जरूर बजा दीजिए मिलते हैं अगली वीडियो में जय हिंद वंदे मातरम