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Satellite Internet: सैटेलाइट इंटरनेट क्या है और यह कैसे काम करता है ? इसके फायदे और नुकसान

सैटेलाइट इंटरनेट, अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों से इंटरनेट सिग्नल भेजकर काम करता है. यह केबल, फ़ाइबर, या टेलीफ़ोन लाइनों पर निर्भर नहीं करता. सैटेलाइट इंटरनेट के बारे में ज़्यादा जानकारी :  

  • सैटेलाइट इंटरनेट, उन इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी देता है जहां ब्रॉडबैंड या मोबाइल नेटवर्क की सुविधा नहीं होती.  
  • सैटेलाइट इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए, एक सैटेलाइट डिश और मॉडेम की ज़रूरत होती है.  
  • सैटेलाइट इंटरनेट का इस्तेमाल करने का तरीकाः
  1. आपका ISP, ग्राउंड स्टेशन से उपग्रह को सिग्नल भेजता है.  
  2. उपग्रह, डेटा को इंटरनेट से जुड़े ग्राउंड स्टेशन पर भेजता है.  
  3. ग्राउंड स्टेशन, डेटा को फिर से सैटेलाइट के ज़रिए आपके डिश पर भेजता है.  
  4. डिश पर रिसीव हुए डेटा को मॉडेम डिकोड करता है और आपके डिवाइस तक पहुंचाता है.  

सैटेलाइट इंटरनेट के फ़ायदेः

  • यह उन जगहों पर इंटरनेट कनेक्टिविटी देता है जहां केबल या मोबाइल नेटवर्क की सुविधा नहीं होती.  
  • यह ज़मीन पर बिछाए गए बुनियादी ढांचे पर निर्भर नहीं करता.

How Satellite Internet Works: टेस्ला और स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क (Elon Musk) भारत में स्टारलिंक (Starlink) इंटरनेट सर्विस को लाॅन्च करने की तैयारी कर रहे हैं. भारत में इसे सरकार की तरफ से अनुमति मिलने के बाद शुरू किया जा सकता है. सैटेलाइट इंटरनेट आमतौर पर मौजूदा समय में इस्तेमाल होने वाले ब्राॅडबैंड इंटरनेट से काफी अलग होने वाला है. आइए जरा समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर सैटेलाइट इंटनेट क्या है और कैसे काम करता है.

स्टारलिंक की इंटरनेट सेवा सैटेलाइट आधारित है, जिसमें ब्रॉडबैंड के टावर या मोबाइल नेटवर्क का उपयोग नहीं किया जाता. सैटेलाइट इंटरनेट एक ऐसी सेवा है जिसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए सैटेलाइट (उपग्रह) का सहारा लिया जाता है. यह उन इलाकों में इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराने में सहायक होती है जहां परंपरागत ब्रॉडबैंड या मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध नहीं होते, जैसे दूरदराज के गाँव, पहाड़ी क्षेत्र, या समुद्री इलाके.

इस सेवा के लिए एक सैटेलाइट डिश और मॉडम की आवश्यकता होती है. जब यूजर किसी वेबसाइट को खोलने का रिक्वेस्ट करता है, तो यह रिक्वेस्ट पहले सैटेलाइट डिश से उपग्रह तक भेजी जाती है. इसके बाद उपग्रह यह रिक्वेस्ट धरती पर स्थित नेटवर्क ऑपरेशन सेंटर (NOC) तक भेजता है, जो इंटरनेट से जुड़ा होता है.

वहां से आवश्यक डेटा एकत्र किया जाता है और सैटेलाइट के माध्यम से यूजर की डिवाइस तक वापस भेजा जाता है. यह डेटा यूजर की डिश पर रिसीव होता है और फिर मॉडम उसे डिकोड करके यूजर के कंप्यूटर या अन्य डिवाइस तक पहुंचता है.

सैटेलाइट इंटरनेट उन इलाकों में इंटरनेट सेवा प्रदान करता है जहां केबल या मोबाइल टावर की सुविधा नहीं होती. इसे उन स्थानों पर भी सेट किया जा सकता है जहां सैटेलाइट सिग्नल उपलब्ध हो.

हालांकि, सिग्नल को उपग्रह तक पहुंचने और वापस आने में समय लगता है, जिससे विलंबता (लेटेंसी) बढ़ सकती है. इसके अलावा, खराब मौसम, जैसे बारिश या बर्फबारी, सिग्नल की गुणवत्ता पर असर डाल सकते हैं.

जानकारी के मुताबिक, अमेरिका में स्टारलिंग की कीमत 110 प्रति माह डॉलर है, जबकि हार्डवेयर के लिए 599 डॉलर एक बार देना पड़ता है. अगर भारत की बात करें, तो इसकी कीमत 7000-8000 रुपये होने का अनुमान लगाया गया है. साथ ही इंस्टॉलेशन चार्ज अलग से देना पड़ सकता है. स्टारलिंक की ओर से कमर्शियल और पर्सनल यूज के लिए अलग-अलग प्लान पेश किए जाते हैं, जो यूजर्स को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं.

सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है

सैटेलाइट इंटरनेट में एक सैटेलाइट डिश और मॉडेम की आवश्यकता होती है। जब यूजर्स कोई इंटरनेट रिक्वेस्ट करते हैं, जैसे किसी वेबसाइट को खोलना, तो यह रिक्वेस्ट पहले सैटेलाइट डिश से एक सैटेलाइट तक भेजा जाता है। सैटेलाइट यूजर्स की रिक्वेस्ट को धरती पर स्थित नेटवर्क ऑपरेशन सेंटर (NOC) पर भेजता है। यह सेंटर इंटरनेट से जुड़ा होता है। वहां से आवश्यक डेटा एकत्रित कर सैटेलाइट के माध्यम से वापस यूजर्स की डिवाइस तक भेजा जाता है। सैटेलाइट द्वारा भेजा गया डेटा यूजर्स की डिश पर रिसीव होता है फिर मॉडेम इसे डिकोड करता है और इसे यूजर्स के कंप्यूटर या अन्य डिवाइस तक पहुंचाता है।

सैटेलाइट इंटरनेट के प्रमुख हिस्से

  • ग्राउंड स्टेशन: ये स्टेशन सैटेलाइट को डेटा भेजते और प्राप्त करते हैं और इन्हें NOC कहा जाता है।
  • सैटेलाइट: सैटेलाइट को धरती की कक्षा में रखा जाता है और यह दूरसंचार के लिए इस्तेमाल होता है।
  • यूजर डिवाइस: यूजर्स के पास एक सैटेलाइट डिश और मॉडेम होता है जो सैटेलाइट से सिग्नल भेजने और प्राप्त करने के लिए जरूरी होता है।

सैटेलाइट इंटरनेट के फायदे

  • दूरस्थ क्षेत्रों में कनेक्टिविटी: यह उन क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं प्रदान करता है जहां केबल या मोबाइल टावर की पहुंच नहीं होती।
  • मोबिलिटी: आप इसे कहीं भी सेट कर सकते हैं जहां सैटेलाइट सिग्नल उपलब्ध हो।

सैटेलाइट इंटरनेट के नुकसान

  • लेटेंसी (विलंब): सिग्नल को सैटेलाइट तक और वापस आने में समय लगता है, जिससे विलंब (Latency) बढ़ सकता है।
  • मौसम पर प्रभाव: खराब मौसम, जैसे बारिश या बर्फबारी, सिग्नल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।


Rohit Nakrani
Rohit Nakranihttps://dailylivekhabar.com/
Daily Live Khabar में हमारे बहुमुखी लेखक Mr. Rohit Patel से मिलें। जटिल विषयों को सरल बनाने के साथ, वह Technology, Entertainment, and Business को कवर करने वाले आकर्षक लेख तैयार करते हैं। और Rohit सिर्फ सूचना नहीं देते, वह सुनिश्चित करते है कि तकनीक की दुनिया और व्यवसाय पर नवीनतम अपडेट प्राप्त करते हुए आपका मनोरंजन होता रहे। और Rohit एक व्यक्तिगत स्पर्श जोड़ते हैं, जिस्से सबसे जटिल विषय भी आसान हो जाते हैं। चाहे वह Breaking tech news हो, New Film रिलीज हो, या Business की गतिशीलता में विशेष हो वह उनकी विशेषज्ञता सभी में प्रोत्साहित करते है।
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